दुनिया के दयावानो!
यहाँ के हर पेड़ का शोक-गीत सुनने
तुम आओ।
मौत से जूझते
पंछियों-परिन्दों का शोर सुनने
तुम आओ।
आओ देखने जगह-जगह लगे
लाशों के बाज़ार।
और शहतूत की तरह
सड़ी-गली देहों का बंटवारा
कुत्तों, गीदड़ों, चीलों और कौवों के बीच।
आओ देखने यहाँ
धर्म के नाम पर निर्मित
रक्तजीवी सभ्यतायें,
परिन्दों के नुचे, कुम्हलाये पंखों की परतों से,
ढकी हुई धरती देखने
तुम आओ।
आओ देखने, दयावानो!
लम्बा-चैड़ा और साफ-सुथरा
विचारों का कब्रिस्तान यहाँ।
तुम्हारे अपनों की आँखों से झरते
हरसिंगार के एक-एक फूल को
बीनने-बटोरने
तुम आओ।
आओ और देखो उगते कमल, रक्त के तालाबों में- रुधिर से भीगा मलयानिल और पंख कटी चिड़ियाँ देते हैं तुम्हें निमंत्राण कि अपनी मीठी और शर्बती थकान को विदा दे तुम आओ। और चाँदनी वाले रेत पर खामोश बैठ देखो अपनी इस फुलवारी में फूलों से झरती पंखुरियाँ पीली बदबूदार रक्त के तालाब में। |
O philanthropists of the world!
To hear elegy of each tree here
you come.
To hear cries of birds
fighting with death
you come.
Come to see here and there
stalls of dead bodies.
And distribution of bodies
rotten like mulberry
among dogs, jackals, kites and crows.
Come to see here
blood-thirsty civilizations
formed in the name of religion,
the earth covered with
layers of scratched, withered feathers of birds,
you come.
Come to see, O philanthropists!
lengthy, broad, neat and clean
graveyard of thoughts here.
Come
to collect
each and every flower of Harsingar
shedding from the eyes of your people.
Come and see growing lotus, in the ponds of blood Malyaanil drenched in blood and birds with clipped wings invite you to say good bye to your sweet and flashy fatigue, you come. And sitting silently on the moon-lit sand look at this flowery land of yours— yellow leaves falling from the flowers in the stinking pond of blood. |
Sunday, November 29, 2015
Come To See
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