Sunday, November 29, 2015

Singing A Song

 गा रहा हूँ गीत
 Singing A Song

सागर के ज्वार-भाटे के समान
मेरी अभिलाषाओं के
उफान को
काटने के प्रयास नहीं होंगे सफल।

धधकती हुई चिताओं पर लेटकर भी
मैंने दिया है अपना प्यार इन्सानियत को,
और गाये हैं गीत
सर्वे भवन्तु सुखिनः के
हर मौसम में।

घास की हरियाली देख
हो जाता है
मेरे रक्त का परिभ्रमण तेज।

तुम यदि किसी डाल पर बैठे हो,
तो मैं गा रहा हूँ
गीत बैठकर पत्तों पर।

मुझे पराजित करना
बिसात नहीं है तुम्हारी।

मैं जीवित आत्माओं का सम्बन्धी हूँ
कभी भी मुर्दों की मौत नहीं मर सकता!

The efforts of subduing
the flux of my desires,
like the ebbs of sea
won't be successful.

Even lying on the burning pyres,
I have given my love to humanity,
and sung the songs of 
'Sarve Bhavantu Sukhinah
(May all become happy!),
in each and every season.

On seeing the greenery of grass,
the circulation of my blood 
becomes fast.

If you are sitting on a branch, 
I am sitting on leaves 
singing a song.

To defeat me 
is beyond your capacity.

I am a relative of the living souls—
can never meet the death of cowards!


No comments:

Post a Comment