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मुक्ति प्राप्त करना मेरी कामना है,
पर इस विश्व वसुधा से
निर्लिप्त होकर नहीं।
विश्व-वसुधा
जहाँ तुम्हारी लीला का सौन्दर्य बिखरा पड़ा है,
सुरभि सने फूलों के आसन बिछे हैं,
सविता की अरुण किरणों से
प्रभात सुनहरी-रागमयी हो रहा है।
कारे-कजरारे मेघों की
ओट से
तुम्हारा मधुर हास झर धरती पर पसर रहा है।
फूलों-सी सुकुमारियाँ
सर पर खाली गागरें रख
राजपथ पर तैरती हुईं
गंगाजल भरने जाती हंै।
उस विश्व-वसुधा से
निर्लिप्त हो
मैं मुक्ति पाना नहीं चाहता।
वरन्, इस वसुधा के
कन-कन में अपना पसीना मिला,
यहाँ के सभी बन्धनों-अवरोधों को स्वीकारता हुआ,
सभी जीवों की सेवा करता हुआ
चाहता हूँ करना सफल अपना मानव-जीवन।
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To get liberation is my wish,
but not being detached from
this celestial earth.
The celestial earth—
where the splendour of Your action is scattered,
the carpet of aromatic flowers is spread out,
the morning becomes golden-red
with the glittering rays of the sun.
From behind
the veil of dark-black clouds,
Your melodious laughter is pouring on earth.
Tender maidens
keeping empty pitchers on their heads,
gladly walking on Rajpath,
go to fetch Gangajal.
Being detached from
this celestial earth
I don't want to get salvation.
Instead, sowing my sweat
in each and every particle of this earth,
accepting all the bonds— hurdles here,
serving all the creatures
I wish to make my human life triumphant.
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Sunday, November 29, 2015
My Wish
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