Sunday, November 29, 2015

Bonds

 म्बन्ध
 Bonds

मेरी हंस जैसी आत्मा ने
चाहा कवि बना रहना,
अंतिम साँस तक।

चाहा- एक भी भंवरा, तितली, फूल, कली
या कपोत के भीतर आह न जगे कभी।
इन सभी को वह
सुरभित फूलों की माला पहिनाये।

परंतु दो लोह पटरियों के बीच
दौड़ती जिन्दगी को देख,
वह स्वयं सड़ते टमाटर-सी
क्षयी हो गई है।

निराश हो गई है,
बैठ गई है एक जगह,
यह देख कि
हमारी धड़कनों का खून जम गया है,
जुड़ गये हैं उनके सम्बन्ध अब काल से।

My swan-like soul 
wishes to remain the poet
till the last breath.

Wishes— let not ever arise even a sob 
in a beetle, butterfly, flower, bud or dove.
Wants to garland them 
with the wreath of odorous flowers. 

But, on seeing the life running
between railroad tracks,
it decays itself
like a rotten tomato.

It is disappointed, 
has rested at one place,
on seeing that
the blood of our pulses is frozen,
now making their bonds with Kaal (Death).

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