Sunday, November 29, 2015

Intellectuals

 बुद्धिजीवी
  Intellectuals

बदलते हुए इस ज़माने में
बन गया है आदमी बिगडै़ल जानवर।
हो गया है उसे दर्प अपनी शक्ति का।
उसकी हर क्रिया ने
ओढ़ली हैं चूनरी विद्रूपता की।

चींटी और मक्खि़यों की तरह
लपकता है चाटने को मिठाई
रखी हुई कमीनेपन की जीभ पर।

भारतीय संस्कृति और जन-हृदय को
वाणी देने वाले बुद्धिजीवी
बन गये हैं
किसी पार्टी विशेष के
पटाखे़दार कवि अथवा भोंपू।

लोदी गार्डन में बैठ
करते हैं नमकीन और चाशनीदार चर्चा
तिरस्कृतों और सर्वहारा की
तथा देखते हैं विदेशी मिठाई की ओर

सचमुच,
वे बन गये हैं अब
ब्लैकमेल करने वाले बुद्धिजीवी।

In this changing world,
man has become a short-tempered animal.
He has got arrogance of his power.
His each and every activity is 
shrouded with ugliness.

Like ants and house bees,
he rushes forward to lick sweet—
placed on the tongue of meanness.

The learned spokesmen of 
Indian culture and people's heart
have become
the bursting poets or mouthpieces of 
some particular party.

Sitting in Lodhi garden,
they make sweet and salty discussion 
of the despised and the proletariat
and look with greed to the foreign sweets.

Truly,
they have now become 
the blackmailing intellectuals.


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