|
|
सागरों और पर्वतों के शिखरों में
आग धधक रही है।
सूरज ठंड से जम गया है
और पिघल रहा है चन्दा
अपने ताप से।
हर आँगन में
धरा है अँधेरा,
और फाँसी पर लटक रही है रोशनी।
नाखूनी दरिन्दे घूम रहे हैं सभी ओर
रखे काँधों पर राकेटी बन्दूकें।
और काली निशा की प्रेतात्मा
समूचे विश्व को हिला रही है
भयंकर तूफान से।
उदासीन मानवता,
खड़ी है सिर थामे
इन सांसारिक कुचक्रों के बीच।
लौह-पंजों से भयभीत
हमारी सिसकियाँ
टकरा रही हैं पर्वतों से,
किन्तु सभी कुछ व्यर्थ है।
|
On the tops of mountains and seas,
fire is blazing.
The sun is frozen with cold
and the moon is melting
with its own calor.
Darkness is pervasive
in every courtyard
and light is hanged on gallows.
Nailish-beasts are wandering all around
keeping rocket-like guns on the shoulders.
And the ghost of dark night
is shaking the whole world
with ghastly storm.
Thwarted humanity stands,
holding the head,
in between these worldly conspiracies.
Our sobs,
scared of the iron claws,
are clashing with mountains,
but everything is pointless.
|
Sunday, November 29, 2015
Everything Is Pointless
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment