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नई भोर से रात के घने अंधेरे तक
खेतों में पसीना बहाते-बहाते,
मानसिक तनाव झेलते-झेलते,
हो जाता हूँ मैं निढाल
एहसास है मुझे इसका।
पसीने में भीगी हुई
मेरी थकावट
कर देती है मुझे निर्जीव
काम से विरत।
कोसता हूँ मैं अपने भाग्य को
कहता हूँ बुरा-भला अपने मालिक को,
परंतु, मैं हूँ विवश और लाचार
ऊपर से नीचे तक।
मेरे मालिक को पता है मेरी औक़ात
डाँटता है मुझे
फटकारता है बुरी तरह
और होता है उतारू करने को मुझे बेइज़्ज़त।
मेरे खून की एक-एक बूँद
चाहता है वह निचोड़ लेना
जैसे वनस्पतियों के रस की एक-एक बूँद निचोड़
बनाते हैं आसव वैद्यलोग
बनने को धनवान।
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From the fresh dawn to the dark night
pouring sweat in the fields,
passing through mental stress,
I become tired
I have the realization of it.
My tiredness
drenched in sweat
make me unconscious,
distracting me from the work.
I curse my luck,
speak ugly words for my master,
but, I am desperate and helpless
from top to bottom.
My master knows my worth,
scolds me
chides me badly
and even bents on insulting me.
Each and every drop of my blood
he wants to extract from me,
such as the Vaidyas squeeze
even the last drop of vegetation
to make the medical decoction
for becoming rich.
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Sunday, November 29, 2015
For Becoming Rich
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