विकास की रफ़्तार
पृथ्वी को रौंद रही है।
कल-कारख़ाने-गाड़ियाँ
विलासिता के साधन
ज़हर उगल रहे हैं।
जिसकी छाया उन पशु-पक्षियों-
और वनस्पतियों पर भी पड़ रही है,
जो मनुष्य के लिए ज़रूरी हैं।
गर्म होते हुए धरती के ख़तरे से
वाकिफ़ है आदमी अच्छी तरह।
फिर भी वह
धँसता जा रहा है
अपने बनाए दल-दल में
इंच-दर-इंच।
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The speed of development
is crushing the earth.
Machines, factories, vehicles—
tools of luxury
are emitting poison.
The shadow of which is falling on
those animals, birds and vegetations
which are essential for human beings.
Man is well-acquainted with
the danger of global warming.
Even then
he is sinking constantly
in the self-made bog
inch by inch.
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Sunday, November 29, 2015
Inch By Inch
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